NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 21 हजारी-प्रसाद-द्विवेदी Kutaj


NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 21 हजारी-प्रसाद-द्विवेदी Kutaj- Free PDF download

Chapter Nameहजारी-प्रसाद-द्विवेदी
Kutaj
ChapterChapter 21
ClassClass 12
SubjectHindi Antra NCERT Solutions
TextBookNCERT
BoardCBSE / State Boards
CategoryCBSE NCERT Solutions


CBSE Class 12 Hindi Antra
NCERT Solutions
Chapter 21 हजारी-प्रसाद-द्विवेदी Kutaj



Question 1:
कुटज को ‘गाढ़े का साथी’ क्यों कहा गया है? 

ANSWER: 

कुटज ऐसा साथी है, जो कठिन दिनों में साथ रहा है। कालिदास ने अपनी रचना में जब रामगिरी पर्वत पर यक्ष को बादल से अनुरोध करने भेजा था, तो वहाँ कुटज का पेड़ ही विद्यमान था। उस समय में कुटज के फूल ही उसके काम आए थे। ऐसे स्थान पर जहाँ दूब तक पनप नहीं पाती है। यक्ष ने कुटज के फूल चढ़ाकर ही मेघ को प्रसन्न किया था। अतः उसे गाढ़े का साथी कहा गया है।

Question 2:
‘नाम’ क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए। 

ANSWER: 

नाम का जीवन में बहुत महत्व है। नाम है, जो मनुष्य की पहचान है। यदि हमें किसी के रूप, आकार आदि का वर्णन किया जाएगा, तो नाम नहीं होने के कारण हम उसे भली प्रकार से पहचान नहीं पाएँगे। मनुष्य को उसके चेहरे-मोहरे से पहचान भी लिया जाए लेकिन जब तक नाम याद न आए मनुष्य की पहचान अधूरी लगती है। समाज में लोग हमें इसी नाम से जानते हैं। यह समाज द्वारा स्वीकृत नाम है। अतः मनुष्य कितना सुंदर ही क्यों न यदि उसका नाम नहीं है, तो उससे पहचानने में बहुत कठिनाई होगी। नाम मनुष्य की पहचान बन गया है। गौर करें, तो हर प्राणी तथा वस्तु के लिए एक नाम दिया गया है। यह नाम इसलिए दिया गया है कि उसे पहचानना सरल हो। उसका रूप, रंग, आकार, गुण, दोष, जाति, धर्म इत्यादि के आधार पर नाम दिया जाता है। इसी पता चलता है कि नाम बहुत बड़ा है।

Question 3:
‘कुट’, ‘कुटज’ और ‘कुटनी’ शब्दों का विश्लेषण कर उनमें आपसी संबंध स्थापित कीजिए। 

ANSWER: 

हजारी प्रसाद जी ने कुटज पाठ में इस विषय पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार ‘कुट’ शब्द के दो अर्थ होते हैं: ‘घर’ या ‘घड़ा’। इस आधार पर ‘कुटज’ शब्द का अर्थ उन्होंने बताया हैः घड़े से उत्पन्न होने वाला। यह नाम अगस्त्य मुनि का ही दूसरा नाम है। कहा जाता है कि उनकी उत्पत्ति घड़े से हुई थी। अब दोबारा ‘कुट’ शब्द की ओर बढ़ते हैं। यदि इस विषय पर गौर किया जाए, तो ‘कुट’ शब्द का अर्थ घर है, तो घर में कार्य करने वाली बुरी दासी को कुटनी नाम दिया गया है। अतः कहीं-न-कहीं यह शब्द आपस में जुड़े हुए है और इनके आपस में संबंध स्थापित हैं।

Question 4:
कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है? 

ANSWER: 

कुटज ऐसे वातावरण में जीवित खड़ा है, जहाँ पर दूब भी पनप नहीं पाती है। वहाँ पर कुटज का खड़े रहना और उसके साथ फलना-फूलना उसकी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करना है। वह पहाड़ों की चट्टानों के मध्य स्वयं को खड़ा रखता है तथा उसमें व्याप्त जल-स्रोतों से स्वयं के लिए जल ढूँढ निकालता है। ऐसे एकाकी स्थानों में भी वह विजयी खड़ा है। यह इतनी विकट परिस्थिति है, जिसमें साधारण पौधे तथा पेड़ का जीवित रहना संभव नहीं है। उसकी यह जीवनी-शक्ति जो उसे अपराजेय बना देती है। अर्थात जीवन के प्रति उसकी ललक उसे कभी न हारने वाला बना देती है। वह खराब मौसम की मार, पानी की कमी में भी अपने लिए राह बनाता है और हमें जीने की प्रेरणा देता है।

Question 5:
‘कुटज’ हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए। 

ANSWER: 

‘कुटज’ हम सभी को उपदेश देता है कि विकट परिस्थितियों में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमें धीरज रखना चाहिए और विकट परिस्थितियों में अपने परिश्रम और शक्ति से काम लेना चाहिए। यदि हम निरंतर प्रयास करते हैं, तो हम इन विकट परिस्थितियों को अपने आगे झुकने के लिए विवश कर देते हैं। विकट परिस्थितियों से गुजरने वाला व्यक्ति सोने के समान चमक कर निकलता है। जो विकट परिस्थितियों को झेल लेता है फिर उसे कोई गिरा नहीं सकता है।

Question 6:
कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है? 

ANSWER:
कुटज के जीवन से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं- 

(क) हमें हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए।

(ख) विकट परिस्थितियों का सामना धीरज के साथ करना चाहिए।

(ग) अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए।

(घ) स्वयं पर विश्वास रखो किसी के आगे सहायता के लिए मत झुको।

(ङ) सिर उठाकर जिओ।

(च) मुसीबत से घबराओ मत।

(छ) जो मिले उसे सहर्ष स्वीकार कर लो।


Question 7:
कुटज क्या केवल जी रहा है- लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमज़ोरियों पर टिप्पणी की है? 

ANSWER: 

लेखक यह प्रश्न उठाकर मानवीय कमज़ोरियों पर प्रहार करता है। लेखक के अनुसार कुटज का वृक्ष जीता ही नहीं बल्कि यह सिद्ध कर देता है कि मनुष्य में यदि जीने की ललक है, तो वह किसी भी प्रकार की परिस्थितियों से सरलतापूर्वक निकल सकता है। इस प्रकार जीने में वह अपने आत्मसम्मान तथा गौरव दोनों की रक्षा करता है। किसी से सहायता नहीं लेता बल्कि साहसपूर्वक जीता है। लेखक केवल जीने से यह प्रश्न उठाता है कि कुटज का स्वभाव ऐसा नहीं है। वह जीने के लिए नहीं जी रहा है। इसके लिए उसमें दृढ़ विश्वास है।
यह प्रश्न उन मानवों को लक्ष्य करके बनाया गया है, जो जीवन की थोड़ी-सी कठिनाइयों के आगे घुटने टेक देते हैं। उनके पास जीने की वजह होती ही नहीं है, बस जीने के लिए जीते हैं। ऐसे लोगों में साहस, जीने की ललक की कमी होती है। ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

Question 8: 

लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई न कोई शक्ति अवश्य है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
ANSWER: 

स्वार्थ हमें गलत मार्गों पर ले जाता है। इस स्वार्थ के कारण ही मनुष्य ने गंगनचुम्बी इमारतें खड़ी की हैं, सागर में बड़े-बड़े पुल बनाए हैं, सागर में चलने वाले जहाज़ बनाए, हवा में उड़ने वाला विमान बनाया है। हमारे स्वार्थों की कोई सीमा नहीं है। जिजीविषा के कारण ही हम जीने के लिए प्रेरित होते हैं। लेकिन स्वार्थ और जिजीविषा ही हैं, जो हमें गलत मार्ग में ही ले जाते हैं। इन दोनों के कारण ही हम स्वयं को महत्व देते हैं। हम भूल जाते हैं कि हम क्या कर रहे हैं। लेखक इन दोनों से अलग शक्ति को स्वीकार करता है। उसके अनुसार सर्व वह शक्ति है, जो सबसे बड़ी है। जब मनुष्य इस सर्व शक्ति को स्वीकार करता है, तो वह मानव जाति ही नहीं बल्कि इस पृथ्वी में विद्यमान सभी जातियों का कल्याण करता है। कल्याण की भावना उसे महान बनाती है। यह ऐसी प्रचंडता लिए हुए है कि जो मनुष्य को मज़बूत और निस्वार्थ बना देती है। उसमें अहंकार, लोभ-लालच, स्वार्थ, क्रोध इत्यादि भावनाओं का नाश हो जाता है। जो उभरकर आता है, वह महान कहलाता है। इतिहास में इसके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। बुद्ध, गुरूनानक, अशोक, महात्मा गांधी इत्यादि।

Question 9: 

‘कुटज’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ‘दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।’
ANSWER: 

दुख और सुख सच में मन के विकल्प हैं। लेखक के अनुसार जिस व्यक्ति का मन उसके वश में है, वह सुखी कहलाता है। कारण कोई उसे उसकी इच्छा के बिना कष्ट नहीं दे सकता है। वह अपने मन अनुसार चलता है और जीवन जीता है। दुखी वह है, जो दूसरों के कहने पर चलता है या जिसका मन स्वयं के वश में न होकर अन्य के वश में है। वह उसकी इच्छानुसार व्यवहार करता है। उसे खुश करने के लिए ही सारे कार्य करता है। वह दूसरे के समान बनना चाहता है। अतः दूसरे के हाथ की कठपुतली बन जाता है। अतः दुख और सुख तो मन के विकल्प ही हैं। जिसने मन को जीत लिया वह उस पर शासन करता है, नहीं तो दूसरे उस पर शासन करते हैं।

Question 10:
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) ‘कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतर गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।’
(ख) ‘रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सैक्शन’ कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात!’
(ग) ‘रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना हुआ है।’
(घ) हृदयेनापराजितः! कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलति न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिलती है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि!’ 

ANSWER:
(क) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। इसमें लेखक कुटज की विशेषता बताते है। दूसरी ओर वह ऐसे लोगों की और संकेत करता है, जो स्वभाव से बेशर्म होते हैं लेकिन ये बेशर्मी उसकी विकट परिस्थितियों से लड़ने का परिणाम होती है।
व्याख्या- लेखक इन पंक्तियों के माध्यम से कुटज तथा ऐसे लोगों के बारे में बात करता है, जो बेहया दिखाई देते हैं। लेखक कहता है कि कुटज ऐसे वातावरण में सिर उठाकर खड़ा है, जहाँ अच्छे-अच्छे धराशायी हो जाते हैं। वह पहाड़ों की चट्टानों पर पनपने के साथ-साथ उनमें विद्यमान जल स्रोतों से अपने लिए पानी की व्यवस्था भी कर लेता है। लोग फिर उसके इस प्रकार के खड़े रहने के स्वभाव को बेहया का उदाहरण ही क्योंन मान लें। यह स्वभाव उनकी विकट परिस्थितियों से लड़ने का परिणाम है। अतः वह उनके स्वभाव में दिखता है। ऐसे ही कुछ लोग होते हैं जीवन में विकट परिस्थितियों से गुजरते हैं और डटकर खड़े रहते हैं। उनके इस स्वभाव को लोग बेहया होने का प्रमाण मानते हैं। उनका यही स्वभाव उनकी रक्षा करता है और उन्हें मजबूती से खड़े रखने में सहायता करता है। ऐसे लोग अपना रास्ता स्वयं खोजते हैं।
(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में नाम की विशेषता बताते हैं।
व्याख्या- लेखक इन पंक्तियों में नाम की विशेषता बताता है। लेखक कहता है कि यह सत्य है कि मनुष्य अपने ‘रूप’ से पहचाना जाता है। जैसा उसका रूप होता है, वैसी उसकी पहचान होती है। यह व्यक्ति द्वारा दिया गया है और यह एक सच है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। ऐसे ही ‘नाम’ है। ‘नाम’ समाज में हमारी पहचान होती है। इससे ही हमें जाना जाता है। समाज द्वारा इसे स्वीकृति मिली होती है। आधुनिक भाषा में इसे ‘सोशल सैक्शन’ कहते हैं। इसका अर्थ है कि आपका नाम समाज द्वारा स्वीकार किया गया है। लेखक कहता है कि मेरा मन नाम का अर्थ ढूँढने के लिए परेशान हो रहा है। अर्थात इसे समाज द्वारा कब स्वीकारा गया, इसे इतिहास के माध्यम से कैसे सही साबित किया गया होगा कि यह लोगों के ह्दय में जगह पा गया।
(ग) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में कुटज की विशेषता बताते हैं।
व्याख्या- लेखक प्रस्तुत पंक्तियों में कुटज की शोभा की बात करते हैं। वह कहते हैं कि कुटज देखने में बहुत सुंदर होता है। इसकी शोभा इतनी प्यारी होती है कि उसकी बलाएँ लेने का मन करता है। यदि वातावरण पर दृष्टि डालें तो चारों ओर भयंकर गर्मी पड़ रही है। ऐसा लगता है मानो यमराज साँस ले रहे हों। इतनी प्रचंड गर्मी होने के बाद भी यह झुलसाया नहीं है। इसमें हरियाली छायी हुई है। इसके साथ-साथ यह फल भी रहा है। यह ऐसे पत्थरों के बीच में से भी अपनी जड़ों के लिए रास्ता बनाता है और उनमें विद्यमान ऐसे जलस्रोतों को खोज लाता है, जिसके बारे में किसी को नहीं पता होता। लेखक ने पत्थरों की तुलना दुर्जन व्यक्तियों से की है। अतः वह कहता है कि कुटज अपने जीवन के लिए विकट परिस्थितियों से लड़ता भी है और सिर उठाकर खड़ा भी रहता है।
(घ) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में कुटज की विशेषता बताते हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कुटज की विशेषता बताता है। यह कैसा हृदय है, जो कभी पराजय नहीं होता। वह सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय भावों की स्थिति में भी समान भाव से रहता है। अर्थात उसका इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उनका हृदय यदि इस गुण से व्याप्त है, तो वह बहुत ही विशाल है। वह दृढ़ होकर खड़ा रहता है। ऐसे उसे कुटज को देखकर लगता है। उसे देखते ही वह रोमांच भाव से भर जाता है। वह विकट परिस्थितियों में भी सिर उठाकर खड़ा है। उसकी स्थिति देखकर पता चलता है कि वह प्रसन्न है। यह उसके हरे-भरे रूप को देखकर ज्ञात हो जाता है। लेखक को उसके निडर, कभी न हारने वाले स्वभाव तथा अविचल स्वभाव से झलकता है। वह विशाल जीवन दृष्टि लिए हुए है, जो उसे कभी हारने नहीं देती। 

 


Question 1:
‘कुटज’ की तर्ज पर किसी जंगली फूल पर लेख अथवा कविता लिखने का प्रयास कीजिए। 

ANSWER:
बुरांस लालिमा लिए खिल रहा है,
पर्वतीय प्रदेशों में
वहाँ रक्तिमा फैला रहा है,
मात्र रंग का सौंदर्य नहीं है इसमें
कुछ अपने भी अपूर्व गुण है
यही कारण है कि नेपाल का राष्ट्रीय फूल और उत्तराखंड का राज्य फूल है यह
मेरे हृदय को भा रहा है, बुरांस का फूल है यह 


Question 2:
लेखक ने ‘कुटज’ को ही क्यों चुना? उसको अपनी रचना के लिए जंगल में पेड़-पौधे तथा फूलों-वनस्पतियों की कोई कमी नहीं थी। 

ANSWER: 

यह सही है कि लेखक के पास उदाहरणों की कोई कमी नहीं थी। कुटज की विशेषताएँ ही ऐसी थी कि लेखक को उसके विषय में लिखने के लिए विवश होना पड़ा। प्रायः एक लेखक का कर्तव्य होता है ऐसी रचना करना जो समाज को ज्ञान भी दे और ज्ञान से जीवन के गुढ़ रहस्य के बारे में भी बताए। इस तरह वह जहाँ प्रकृति से लोगों को जोड़ता है, वहीं जीवन से भी उनका संबंध स्थापित करता है। कुटज ऐसा ही उदाहरण है, जिससे लेखक न केवल उसके बारे में बताया साथ ही लोगों के जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों से उसका संबंध स्थापित कर लोगों को मार्ग दिखाया।

Question 3:
कुटज के बारे में उसकी विशेषताओं को बताने वाले दस वाक्य पाठ से छाँटिए और उनकी मानवीय संदर्भ में विवेचना कीजिए। 

ANSWER:
(1) शिवालिक की सूखी नीरस पहाड़ियों पर मुसकुराते हुए ये वृक्ष द्वंद्वातीत हैं, अलमस्त हैं। 

(2) अजीब सी अदा है मुसकुराता जान पड़ता है।

(3) उजाड़ के साथी, तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ।

(4) धन्य हो कुटज, तुम ‘गाढ़े के साथी हो।’

(5) कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता।

(6) कुटज इन सब मिथ्याचारों से मुक्त है। वह वशी है। वह वैरागी है।

(7) सामने कुटज का पौधा खड़ा है वह नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषण करता है।

(8) मनोहर कुसुम-स्तबकों से झबराया, उल्लास-लोल चारुस्मित कुटज।

(9) कुटज तो जंगल का सैलानी है।


Question 4:
‘जीना भी एक कला है’- कुटज के आधार पर सिद्ध कीजिए। 

ANSWER: 

यह बिलकुल सही है कि जीना भी एक कला है। कुटज ने यह सिद्ध कर दिया है। जो विकट परिस्थितियों में और असामान्य परिस्थितियों में भी स्वयं को जिंदा रखे हुए है, तो उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। ऐसे ही मनुष्य को जीना चाहिए। सुख-दुख तो आते रहते हैं। जो मनुष्य सुख-दुख में स्वयं को समान रख सके वही वास्तव में जीना जानता है। सुख में तो सभी सुखी होते हैं, जो दुख में रहकर भी हँसे सही मायने में उसने जीना सीख लिया है। इस कला को हर कोई नहीं जानता है। इस कला को विकसित करने के लिए हमें गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। अगर हमने सीख लिया तो यह जीवन स्वर्ग हो जाएगा।

Question 5:
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा पं हजारी प्रसाद द्विवेदी पर बनाई फिल्म देखिए। 

ANSWER:
विद्यार्थी इस कार्य को स्वयं करिए।